कांस फेस्टिवल में फोटो के मायने
१. आज कल हमारे स्टार्स में कांस फिल्म फेस्टिवल में फोटो खिंचवाने की बड़ी होड़ मची हुई है। जिसे देखो वही रेड कारपेट पर फोटो खिंचा रहा है।
लेकिन फिल्म इनमे से किसी की भी नहीं है उस फेस्टिवल में। कमाल है ना , न्योता नहीं है लेकिन दूल्हा , दुल्हन की तरह फैशन फोटो खिंचवानी है।
२. कुल जमा ४-६ फिल्में ही अब तक कांस फेस्टिवल में भारत की तरफ से शामिल हुई हैं लेकिन फोटो ऐसी की पूरे फेस्टिवल को बॉलीवुड ही स्पांसर कर रहा है।
३. इन तथाकथित स्टार्स को शायद प्रॉपर लिखी हुई स्क्रिप्ट भी न पढ़नी आती हो लेकिन सिनेमा के इस सबसे बड़े शो में ऐसा दिखाएंगे जैसे इनके बगैर तो कांस तो फिल्म समझ ही नहीं पाता।
४. यंहा पर उनके पी आर यह हवा फैलाते हैं कि कांस में तो उनका स्टार छा गया लेकिन इंटरनेशनल प्रेस तो शायद उनका फोटो तो छोड़ो नाम भी नहीं छापती।
५. बॉलीवुड में कुछ ऐसे भी तत्त्व हैं जिनकी रोज़ी रोटी ही कांस के भरोसे चलती है। वंहा जा के कुछ अजीब सी ड्रेस पहन के , थोड़ा अंग प्रदर्शन करके साल भर काम चला लेते हैं।
६. कुछ स्टार्स ऐसे भी हैं जो इंटरनेशनल फिल्मों में पलक झपकते ही ओझल हो जाने वाले रोल करके अपने आप को टॉम क्रूज और हैरिसन फोर्ड समझ लेते हैं लेकिन वंहा जाने के बाद पता चलता है कि पानी कितना गहरा होता है।
७. बहुत सारी हीरोइनों को सिर्फ इसलिए वहाँ सिर्फ इसलिए बुलाया जाता है कि स्पॉन्सर कॉस्मेटिक कंपनी ने जो साल भर पैसे दिए हैं उसकी कुछ तो वसूली हो जाए। चार छह फोटो ही खिंच लिए जाएँ। फिल्मों का क्या है वह तो इंडिया में कुछ न कुछ कर ही लेंगे।
८. आज कल एक नया ट्रेंड चला है कि मान न मान मैं तेरा मेहमान। इसी फेस्टिवल के टाइम पर कुछ चिल्लर किस्म के फेस्टिवल भी होते हैं और बहुत से तथा कथित बुद्धिजीवी और परजीवी टाइप के फिल्मकार वंहा जा के ही घोषणा कर देते हैं कि उनकी फिल्म का कांस में प्रदर्शन हुआ। अरे भाई कांस न हुआ मोहल्ले की राम लीला हो गयी।
९. राइटर और डायरेक्टर्स को जो इज्जत वहां मिलती है उसी वजह से अच्छी फिल्में वहां बन पाती हैं। भले ही भारत दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाला देश है लेकिन क्वालिटी टैलेंट को सराहने से मिलती है , स्टार्स की चमचागिरी से नहीं।
१०. कुछ लोगों ने तो अगले साल की ड्रेस भी सिलवानी शुरू कर दी है अगले साल के कांस फेस्टिवल के लिए। क्या करें खबरों में बने रहने के लिए कुछ तो करना ही पड़ता है , काम छोड़ के।
प्रभाकर शुक्ल
लेखक - निर्देशक
मेंबर - सेंसर बोर्ड
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